महापुरुषों का सानिध्य मिले तो अपराधी भी संत बन सकता है- श्री विजयमुनि जी मसा  
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Desk Report


नीमच। महापुरुषों साधु-संतों के माध्यम से परमात्मा की वाणी श्रवण करें तो अपराधी ,चोर ,डाकू व तस्कर भी यदि समर्पण भक्ति से जुड़ जाए तो अपने जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन कर सकता है। और अपराध जगत को छोड़कर साधु संत बन कर आत्मा और परमार्थ और समाज के कल्याण के लिए अग्रसर हो सकता है। धर्म क्षेत्र में ऐसे अनेक उदाहरण प्रेरणादाई आदर्श है। यदि धर्म जीवन में आत्मसात होता है तो पाप कर्म सदैव दूर हो जाता है इसलिए सदैव पुण्य परमार्थ के मार्ग पर चलकर अपना तथा दूसरों को कल्याण करना चाहिए।यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, आगम मनस्वी साहित्य भूषण कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास  धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में धर्म के प्रति युवा वर्ग का ध्यान कम हो रहा है चिंतन का विषय है। युवा वर्ग अभी थोड़ा समय भी धर्म-कर्म के मर्म को समझने में लगाएं तो उनके जीवन के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। युवा वर्ग धर्म कर्म का पुण्य कार्य के परिश्रम का पुरुषार्थ करें तो पत्थर से भी पानी निकल सकता है। जिस प्रकार 1बीज मिट्टी में दबकर कर वट वृक्ष बन जाता है उसी प्रकार मनुष्य भी तपस्या का संघर्ष कर भगवान बन सकता है। मनुष्य का मन चेतन अवधारणा है वह त्याग तपस्या करें तो ज्ञान को प्राप्त कर शास्त्रों  का ज्ञाता बन सकता है। आधुनिक युग में मनुष्य केवल रोटी कपड़ा और मकान के पीछे भाग रहा है।लेकिन साधु संत बनने के बाद भी रोटी कपड़ा और मकान की सुविधा उपलब्ध होती है ऐसा नहीं है कहीं कहीं परेशानी भी आती है लेकिन समस्या का निराकरण हो जाता है तपस्या उपवास से आत्मा निर्मल होती है।समाज में ज्ञान का एक दीपक जलता है तो उस दीपक के माध्यम से सैकड़ों और आगे चलकर हजारों दीपक भी जल सकते हैं और समाज का कल्याण हो सकता है। हम संयम नियम धर्म आराधना का पालन करें तो  अपनी आत्मा का कल्याण  और दूसरों की भलाई का कार्य कर सकते है। इस युग में कुछ भी संभव है जो आज दुश्मन है कल मित्र बन सकता है। और जो आज मित्र है वह कल दुश्मन बन सकता है। इसलिए संसार में सदैव भलाई के कार्य करना चाहिए बुराई से सदैव बचना चाहिए और जीवन में धर्म तपस्या से जुड़े छोटे-छोटे नियम का पालन करना चाहिए छोटे-छोटे जीवन भी छोटा नियम भी जीवन में रक्षा कर सकता है और जीवन का कल्याण हो सकता है विजय मुनि महाराज साहब ने धर्म सभा में आनंद आना रे  मिठाई मेवा लाना रे कभी सुखी रोटी कभी घी लाना रे संत जीवन में कठिनाई कभी आना रे हाय हाय रे कैसा जमाना रे एक भूखा एक मजा करे एक मिठाई खाए एक रोटी बिना  रे हाय हाय कैसा जमाना रे गीत प्रस्तुत किया।डॉक्टर साध्वी डॉ विजय सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि जिसने अपने मन की इंद्रियों को जीत लिया उसने जगत को जीत लिया है। जो इंद्रियों और मन पर नियंत्रण कर लेता है वह संसार को अपना बना सकता है और अपना तथा समाज और दूसरों का कल्याण कर सकता है।चतुर्विद संघ की उपस्थिति में  चतुर्मास काल  तपस्या साधना निरंतर प्रवाहित हो रही है। इस अवसर पर  विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की। धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा.एवं साध्वी विजय श्री जी म. सा. का सानिध्य मिला।इस अवसर पर श्री अभिजीतमुनिजी म. सा., श्री अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा  में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया।  इस अवसर पर श्री वर्धमान स्थानकवासी श्रावक संघ अध्यक्ष अजीत कुमार बम्म, चातुर्मास समिति संयोजक बलवंत सिंह मेहता, सागरमल सहलोत, मनोहर शम्भु बम्म, सुनील लाला बम्ब, निर्मल पितलिया, सुरेंद्र  बम्म, वर्धमान स्थानकवासी नवयुवक मंडल अध्यक्ष संजय डांगी ,दिवाकर महिला मंडल अध्यक्ष रानी राणा ,साधना बहू मंडल अध्यक्ष  चंदनबाला परमार आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे। इंदौर रतलाम, जावद जीरन, चित्तौड़गढ़, छोटी सादड़ी निंबाहेड़ा जावरा नारायणगढ़, उदयपुर आदि क्षेत्र से समाज जन सहभागी बने और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन प्रवक्ता भंवरलाल देशलहरा ने किया।

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