छतरिया बालाजी में श्रीराम कथा में उमड़ रहे भक्तजन, जिसका भी अस्तिव है उसी में राम है, जब तक आत्मा है तभी तक आप है-- संत नन्दकिशोरदास महाराज ............. खबर सतीश सेन की कलम से
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सिंगोली । भगवान जो भी करते अच्छा ही करते। परन्तु हम समझ नही पाते और ईश्वर में दोष निकालने लगते है । जो राम भरोसे रहता है उसका सब काम ईश्वर सम्भाल लेते है । जिसका भी अस्तिव है उसी में राम है । जब तक आत्मा है तभी तक आप है यह उपदेश तपोनिष्ठ संत नन्दकिशोरदास जी महाराज बोल रहे थे
वे  कदवासा चौराहा के छतरिया बालाजी में समस्त क्षेत्रवासियों के तत्वाधान आयोजित श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन भक्तों को कथा श्रवण करा रहे थे

श्रीराम कथा में भगवान श्री राम के बाल्यकाल के विवरण का वर्णन करते हुए आगे   बताया कि दुनिया भर के कौए गंदगी में वास करते हैं परन्तु कागभुशुण्डीजी ने भगवान के जन्म के उपरान्त संकल्प किया कि जब तक भगवान पांच वर्ष के नहीं हो जाएंगे तब तक सब कुछ त्याग,  मैं अवघ में ही वास करुंगा तथा राजा दशरथ के महल की मुडेरी पर बैठ भगवान की बाल लीलाओं के दर्शन कर जीवन धन्य करुंगा।

कागभुशुण्डि जी ने संकल्प लिया था कि भगवान के हाथ का जो झूठन गिरेगा वही प्रसाद ग्रहण करूंगा। महाराज श्री ने आगे बताया कागभुशुण्डी जी कोई सामान्य कौवा नहीं थे। उनकी दक्षता का वर्णन करते हुए उन्होने बताया कि भगवान भोलेनाथ जी भी कागभुशुण्डीजी से श्री राम कथा सुनने स्वयं जाया करते थे। आगे की बाल-लीला में भगवान श्रीराम के घर में खेलने और राजा दशरथ के कहने पर माता कौशिल्या द्वारा धूलघूसरित प्रभू को उठाकर दशरथ जी के गोद में डालने का सुंदर वर्णन पर पंडाल में उपस्थित श्रद्धालु व महिला नृत्य कर झूम उठे।

भारत की शिक्षा संस्कृति के अनुरूप नहीं

नामकरण की व्याख्या करते हुए व्यासजी ने कहा कि नाम ही मनुष्य का भाग्य, भविष्य तय करता है। प्रभु श्री राम का नाम लेने मात्र से ही मनुष्य धन्य हो जाता है। हमारे समाज में जो बुराइयां व्याप्त है उनका कारण शिक्षा का अभाव ही है, आज जो भारत में शिक्षा दी जा रही है वह संस्कृति के अनुरूप नहीं है। हमारी संस्कृति में शिक्षा धर्म से जोडऩे वाली, त्यागमयी जीवन जीने वाले व दूसरों का हित करने वाली शिक्षा होती थी।

बचपन का संस्कार व्यक्ति निर्माण में सहायक होता है हमारे शास्त्रों में ग्रह नक्षत्र के आधार पर ही नामकरण करने की व्यवस्था थी। श्री राम के नाम करण एवं भगवान श्रीराम के बचपन की लीलाओं का वर्णन किया गया। व्यास जी ने कहा हिन्दू धर्म में 16 संस्कार बताये गये हैं। इनमें नामकरण संस्कार भी है। यही संस्कार किसी भी बालक के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं। नाम ही मनुष्य का भाग्य भविष्य तय करता है पूच्य व्यास जी ने कहा कि नाम भी राशि और ग्रह नक्षत्र के आधार पर होना चाहिए। 

बच्चों को शिक्षा व संस्कार देना जरूरी

श्रीराम कथा में महाराज ने खासकर महिलाओं पर जोर देते हुए बताया कि बचपन से बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिए अगर हमारे घर की नींव मजबूत होगी तो हम कई    बड़ी मंजिले खड़ी कर सकते है वैसे अगर हमारे बच्चों को घर पर अच्छे संस्कार देंगे तो बच्चा स्कूल में भी अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकता हमेशा घर मे अपने बालक व बालिकाओं को मंदिर जरूर भेजना चाहिये। हमारी भारतीय संस्क्रति व सभ्यता अनुसार हमे हमारे घरों में रामायण व गीता जैसे ग्रन्थ जरूर होना चाहिये साथ ही बच्चों को भी हमारे ग्रन्थों का अभ्यास सीखना होगा
तभी तो हमारे घर मे सुख शांति सम्रद्धि व विकास हो सकता

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