आलेख:: ओमप्रकाश चौधरी
सड़कें हमारे देश की जीवन रेखा हैं | इतिहास में चर्चित सड़क है शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित ग्रांट ट्रंक रोड| आज इस जैसे कई राजमार्ग इस देश में है और रोज नए बन रहे हैं | सड़कों को लेकर स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा स्वप्न अटलजी ने देखा और उसे साकार किया स्वर्णिम चतुर्भुज एवं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के रूप में | इसी के साथ पूर्वी और पश्चिमी गलियारा भी बनना था पर वे प्रधानमन्त्री रहे नही और ये गलियारे कागजों पर ही रह गए | 2014 के बाद एक्सप्रेस वे के रूप में देश में सड़कों का नया जाल बनना बिछाना शुरू हुआ | देश की सीमाओं पर सड़कों का विस्तार हुआ | लेह और मनाली के बीच अटल टनल , जम्मू श्री नगर के बीच एक नये टनल मार्ग का निर्माण | मुंबई में दो नए सी लिंक पुल सड़कों का निर्माण | उत्तराखंड में हर मौसम में जाने लायक राजमार्गों का निर्माण प्रगति पर है | मध्य प्रदेश की बात करें तो 2003 तक जहाँ हमें गड्ढों के बीच सडक खोजनी पड़ती थी आज हर तरफ चार लेन और दो लेन सड़कों का जाल बिछ चुका है | आज के भारत में सड़कों पर चलने में आनन्द आता है झुंझलाहट नहीं होती | लेकिन सवाल उठता है क्या हम इन सड़कों पर चलने लायक हैं ? क्या हमने इन सड़कों पर नियमों के हिसाब से चलना सीखा है ? जवाब है नही | तो कुछ बात सडको पर चलने वाले हम लोगों की |
मैं इन वर्षों में अक्सर सडकों से भी यात्रा करता रहा हूँ | मालवांचल की कई सड़कों पर अक्सर आना जाना होता है | नयागांव लेबड़ फ़ोर लेन में निर्माण सम्बन्धी कमियों पर अक्सर चर्चा होती है इसे खूनी मार्ग भी कहा जाता है | लेकिन क्या सारी गलती सडक या उसके निर्माताओं की ही है ? सडक चाहे शहर की हो या राजमार्ग पर चले जाइए गलत साइड पर चलते दुपहिया और चार पहिया आपको मिल जायेंगे , हर 20 -25 किलोमीटर के बीच जहाँ मन आये वहां लोगों ने डिवाइडर को तोड़कर रास्ते बना लिए हैं | यहाँ तक कि होटल वालों और पेट्रोल पम्प वालों ने डिवाइडर खोदकर मनमाने तरीके से अपने संस्थान तक आने के रास्ते (कट) बना लिए हैं ये अनाधिकृत क्रासिंग आये दिन दुर्घटनाओं को निमत्रण देते हैं| छोटे शहरों और गाँवों में बने सर्विस रोड पर आपको जानवर बंधे मिल जायेंगे या उन पर अतिक्रमण और दुकाने पसरी मिल जायेंगी | नतीजा उन पर चलने वाले वाहन कहाँ जाएँ | फ़ोर लेन पर वाहन खड़े करना प्रतिबंधित हैं लेकिन चाहे जहाँ इन सड़कों पर खड़े वाहन मिल जायेंगे | सड़कों पर चलते हुए कंधे और टेढ़ी गर्दन के बीच मोबाईल फंसा कर बात करना फेशन बन चुका है | यह फेशन कई बार जान लेवा भी हो सकता है पर परवाह किसे है | इंदौर बेतूल नागपुर तक राष्ट्रीय राज मार्ग पर कुछ दिनों पूर्व यात्रा करते हुए डबल चौकी ग्राम में जो कुछ देखा वह हैरान करने वाला था | यह राजमार्ग इस गाँव से होकर गुजरता है | लेकिन गाँव की पूरी सडक पर दुकानों का अतिक्रमण पसरा हुआ है | नतीजा यातायात चलता नहीं रेंगता है | यही हाल लगभग हर राजमार्ग का है | एक सुखद स्थिति मुझे पिछले दिनों इंदौर से मानपुर के बीच आगरा मुंबई फ़ोर लेन पर यात्रा में देखने को मिली | 40 किलोमीटर लम्बी इस सडक पर कहीं भी अनाधिकृत रूप से बने कट या रास्ते दिखाई नही दिए | हमें अच्छी सड़कें चाहिए ,चौड़े राजमार्ग चाहिए लेकिन उन पर चलने का सलीका हम कब सीखेंगे यह सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है
आये दिन सड़कों पर वाहनों के टकराने की ख़बरें छपती रहती हैं | इन दुर्घटनाओं के बाद पुलिस से लेकर मिडिया और जनता तक बड़े वाहन और उसके चालक को दोषी ठहराने में लग जाती है | लेकिन क्या हर समय गलत केवल बड़ा वाहन ही होता है ? दुर्घटनाओं के बाद सड़कों पर जुटी भीड़ वाहन चालकों पर जानलेवा हमले कर देती है, वाहनों में तोड़फोड़ कर आग तक लगा देती है | आखिर भीड़ पुलिस,जज सब कुछ क्यों बन जाती है ? पिछले 10-15 वर्षों में सड़कों पर वाहन चलाने का मेरा अनुभव कहता है कि नियमों की अनदेखी करने और ऐसा करने में शान समझने की हमारी आदत अधिकांश दुर्घटनाओं का कारण है | जगह न होते हुए हुए भी येन केन प्रकारेण हर छोटा वाहन चालक अपनी गाड़ी निकालने की कोशिश करता है नतीजा सड़कों पर जाम और कभी कभी यही जल्दी दुर्घटनाओं का कारण भी बनती है | सड़कों पर चलते समय वाहनों के बीच में एक सुरक्षित दूरी कम से कम 3 से 5 फिट तक होनी ही चाहिए लेकिन अधिकांश वाहन चालक इसका पालन नही करते और नतीजा यदि किसी कारण वश आगे का वाहन रुकता है तो पीछे चलने वाला उससे टकरा जाता है | और तब खबर यह बनती है कि आगे चल रहे वाहन चालक ने अचानक ब्रेक लगा दिया और पीछे वाला वाहन उसमें जा घुसा | करे कौन और भरे कौन |
हमारी व्यवस्था ने एक अलिखित कानून बना रखा है दुर्घटना हुई बड़ी गाड़ी वाले के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर दो चाहे उसकी गलती हो या न हो | मोटर वाहन कानून कहता है कि बिना ड्रायविंग लाइसेंस और वैध बीमा कराये वाहन चलाना अपराध है लेकिन दुर्घटनाओं के समय शायद ही कभी इस तथ्य पर ध्यान दिया जाता है | न ही कभी मोटर वाहन कानून के अंतर्गत छोटे वाहन चालक पर इस क़ानूनी उल्लंघन के लिए प्रकरण दर्ज होता है | नतीजा हर तरह से कानून मानने वाला कौर्ट में आरोपी बनकर भटकता रहता है और कानून का उल्लंघन करने वाला मौज करता है | वह पीड़ित का तमगा लगाए सहानुभूति और दूसरे फायदे ले लेता है | ओव्हर लोडिंग , चौराहों और राजमार्गों से जुड़ने वाले कच्चे ,पक्के मार्गों से मुख्य सडक पर बिना देखे आ जाना जैसे कारण भी दुर्घटनाओं को निमन्त्रण देते हैं | लेकिन कहें किससे ? माने कौन ? लड़के तो ठीक आजकल लड़कियां भी यातायात नियमों को ठेंगा दिखाने में पीछे नही हैं | नाबालिग बच्च्चों के हाथों में वाहन देना माता पिता बड़ी शान समझते हैं , लेकिन उन्ही बच्चों से जब दुर्घटना हो जाती है तो परेशानियों का पहाड़ खड़ा हो जाता है | लेकिन हर दूसरा तीसरा पालक यह गलती दुहराने को तैयार बैठा है | हम सब इन सड़कों पर रोज चलते हैं ये हमें अपनी मंजिल तक तो पंहुचाती ही हैं , हमारी समृद्धि के द्वार भी खोलती हैं | हमारा भी कर्तव्य बनता है कि इनका सम्मान करें इन पर चलने के नियमों को मानकर | तभी जान माल का नुकसान भी कम होगा और सड़कें जान लेवा भी नही कहलाएंगी | मर्जी हमारी है | सड़क केवल मूक दर्शक भर होती है |