मत बनो गांधी जी के तीन बंदर, कुत्तों के आतंक से आहत शहर- राजपुरोहित सुरेश सन्‍नाटा
logo

REPORTER:
Desk Report


अगर हम गांधी जी के तीन बंदरों को देखें तो उन्होंने बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो का संदेश दे रखा है तो शायद उसी का अनुसरण कर नीमच नगर पालिका प्रशासन ने अपनी कार्यशैली  आत्मसात कर बुरा शब्द की जगह जनता को सम्मिलित कर लिया है याने जनता की मत सुनो, उसे मत देखो और उससे बात मत करो का सिद्धांत अपना  प्रमुख दायित्व बना लिया है। नपा प्रशासन की इसी कार्य शैली की बदौलत आज शहर के गली-मोहल्लों से लेकर मुख्य मार्गो पर श्वानों की भीड़ आम आदमी और दो पहिया वाहन चालकों के लिये भारी मुसीबत बन उनकी जान की दुश्मन बनी हुई है। मगर ताज्जुब है गांधी जी के तीन बंदरों वाले सिद्धांत का परिवर्तित रूप अख्तियार कर चुके. नपा प्रशासन को शहरवासियों की पीड़ा से शायद कोई लेना-देना शेष नहीं रहा है। शहर में बैखोफ विचरण कर रहे ये कुत्ते वाहन चालकों का पिछा कर या तो उन्हें दुर्घटनाग्रस्त कर देते है या फिर अस्पताल भिजवा देते हैं। औपचारिक मरहम पट्टी के तौर पर इन. आवारा कुत्तों की नसबंदी का मामला भी सामने आया था जो शायद किसी दीवालिये पन का ही परिणाम है क्योंकि इन कुत्तों को पकड़कर दूर जंगली इलाके में छोड़ना ही सही इलाज साबित होता है मगर कुत्तों के पकड़ने के नाम पर भले ही नपा के पास कर्मचारी व साधन उपलब्ध है मगर वे तीज त्योहार की तरह ही दर्शन देकर औपचारिकता निभाते नजर आते हैं।

आवारा पशुओं की धींगा-मस्ती-

इसी तरह कुत्तों के अलावा यह जिला मुख्यालय आवारा पशुओं की भी गली-मोहल्लों से लेकर मुख्य चौराहों पर दिन-रात की जाने वाली धींगा मस्ती हो या फिर बीच सड़कों पर डेरा जमाकर यातायात अवरुद्ध करने की स्थिति उससे पूरी तरह त्रस्त है । यह रोजमर्रा की बात है जिसका खामियाजा आए दिन शहरवासी दुर्घटनाग्रस्त होकर भुगतते नजर आ रहे है। विशेषकर शहर के सबसे व्यस्ततम व भारी यातायात वाले फव्वारा चौक से स्टेशन तक के मार्ग में चौकन्ना बालाजी से रेल्वे फाटक तक तो इन आवारा पशुओं का इस कदर जमावड़ा दिन-रात लगा रहता है कि वाहन चालकों की जान आफत में ही फंसी रहती है। क्योंकि इनका आपस में 'लड़ना - भीड़ना कब किस पर कहर बरपा उसे दुर्घटनाग्रस्त कर दे कहा नहीं जा सकता । यानें यह  पीड़ा आम आदमी भुगत कर इस संत्रास से, दो-दो हाथ कर रहा है मगर फिर भी नगर पालिका प्रशासन कान में रूई ठूंस कर गांधी जी के बदले हुए तीन बंदरों वाले सिद्धांत पर ही चलता दिखाई दे रहा है। शहर की जनता की और से जिलाधीश से आगृह है कि वे नपा के ऐसे जबाबदार कर्मचारियों को सबक सिखाएं जो जनहित के दुश्मन बंद कर शहर की छाती पर मूंग दल रहे हैं ताकि शहर की पीड़ित जनता को राहत मिल सके।

और बदहाल सड़कें-

मेनका गांधी के जीव दया प्रेम का अनुसरण करने वाले नपा प्रशासन को आदमी के जीवन की कतई चिंता नहीं है। क्योंकि आवारा कुत्तों- पशुओं के अलावा इस शहर की जर्जर व बदहाल सड़कों की बात की जाए तो वे भी शहरवासियों के लिये खासी मुसीबत बन दुर्घटनाओं को आए दिन बुलावा देकर लोगों की जिन्दगी की दुश्मन बनी हुई है। इन जर्जर सड़कों से उड़ती धूल जन स्वास्थ्य के लिये घातक बनी हुई है। मगर नपा की बेशर्म कार्य शैली सिर्फ और सिर्फ प्रस्तावी कलम चलाकर अपने दायित्व से पल्ला झाड़ कर आराम फरमा रही है।

लापरवाही